Thursday, October 10, 2013

प्रोफेसर मेहरबान थे | यार मजेदार .....नॉनवेज चुटकलों पर हँसते हँसते अक्सर चाय छलक जाती थी |पंजाबी गालियों का मौसम था |गालियों के अजीब जोड़ घटाव किये जाते थे | किताब का यह पन्ना इसका किनारा मोड़ कर बंद करना था आज ,ताकि बवक्त ज़रूरत खोला जा सके |पर उन्हीं दिनों यह भी हुआ --

लड़की को काटते काले ततैये को,
मुट्ठी में भर लिया लड़के ने,
सांस छोड़ने से पहले ततैये ने,
काट लिया मुट्ठी में शुक्र की नियत जगह पर,
उस काले निशान को,
अब भी सहलाता है लड़का,
सपनों में लड़की से मिलने से जरा ही पहले |
***
एक दिन पीले सूट में,
बेडमिनटन खेलती लड़की ने बताया,कि
पीले गुलाब बेहतर होते हैं कत्थई गुलाबों से,कि
पीला रंग सफेद कर देता है,
रोज़ काले होते जाते दिलों को भी,
समझाया कि तय होता है एक दिन,
हरे पत्तों का भी पीला होना,
बताया की काले तेसे से,
घडी जातीं हैं,बच्चों के लिए पीली गिल्लियां,कि
घडते हुए देखने पड़ते हैं गिल्ली के दोनों सिरे |
***
लड़के को समझ आया,
वक़्त की बगल में नहीं उगते काले बाल,और
बिना किसी वजह से टपक जाती हैं,
घडी की तीन सुइओं से कोई सी भी,
सीने में चौथा सुराख़ बनाने भर को,
बेकार खवाबों को लपेटे चलने से,
कहीं बेहतर होता जेब भिखारी के कासे में ख़ाली करना,
सबसे अच्छा तो होता है,
खिड़की से झलकते अपने अक्स को देखना,
और गिन लेना मुहांसे एक एक करके,
कह देना खिड़की से ही,
कमबख्त ! कोई जगह तो छोड़ी होती चूमे जाने को|
***
लड़के ने बराबर रखे,
एक केंचुआ और कछुआ भी,
ऊँगली से सहलाया दोनों को,
केंचुए की खाल से रिसती ऊष्मा से भीगा,
हाथ पलट महसूस किया कछुए का ठंडापन,
पानी में छोड़ने से पहले दोनों को चूमा,
ईश्वर से प्रार्थना की,और कहा
इन दोनों के बीच का कुछ बनाते मुझे तुम |
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