Thursday, October 10, 2013

इनदिनों अवसाद घने कोहरे सा उतरा है,
अकेला ,बिस्तर पर पड़ा मैं रुई के इन फाहों को सहलाता हूँ

यह कुछ अलग किस्म के दिन हैं,
इनदिनों खुद के बारे में सोचते हुए मेरे चेतन में उभरते है,
छोटे छोटे जांघिये पहने लडके,
सूखे आंसूओं ने जिनके गालों पर लिखा है,
http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=4179750240606683852#editor/target=post;postID=4056623878180360452;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=0;src=postnameएक्स ,वाई ,जेड
उन्हें नहीं आती यह इबारत मिटानी अभी .

मुझे इनदिनों याद आती हैं हल्के से मुटियाई वे औरतें ,
जिनके सीनों में ईश्वर ने दिल के साथ रखा हैं एक स्पंज का टुकड़ा,
इन औरतों के प्रेमियों की आँख में नहीं उमड़ते आंसू,कि
हर कतरे को जज़्ब कर यह नहीं दिखने देतीं एक भी गरम बूँद ,

यह अटपटे दिन हैं,
इन दिनों सवाल जवाबों की तरह आते हैं,और
जवाब सवालों की तरह उगते हैं ,कि
मैं इन दिनों बाढ़ग्रस्त देशों के बारे में सोचते हुए
सोचता हूँ प्रेम में मुटिया गयी औरतों के स्पंज के बारे में, और
लेता हूँ रोक खुद को इनका दिल उन इलाकों में गिराने से .

पानी बेहद जरूरी है बेशक वह रहे आँख में झील सा ठहरा हुआ !

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