Thursday, October 10, 2013

रात भरपेट खायींरोटियां
ढाबे की कढी के साथ,
और खायीं मुट्ठी भर
नींद की गोलियां
ताकि आज तो सो सकूं
आराम से
और लेट गया बिस्तर पर
यह सोच कर ,कि नहीं ही
सोचना आज बन चुकी या बन रही
इमारतों के बारे में
आधी रात निकल गयी
नींद नहीं आई.
आधी खुली-आधी बंद आँखों से
देखा ,नींद के फ़रिश्ते को
जिसने कहा,
सचमुच सोने के लिए
जागना ज़रूरी है.

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