Thursday, October 10, 2013

सन बानवें का कोई दिन था |कालेज से उकताए मैंने,और मुझसे उकताए कालेज ने पंजाब यूनिवर्सिटी प्रेस से छपे,एक ब्लोटिंग पेपर नुमा चीज़ पर समझौता कर लिया | मैं कालेज के सामने भीम के टी स्टाल पर आकर बैठ गया,और चाय के साथ ब्रेड पकौड़ा खाने लगा |गुलमोहर के पेड़ों से भरे,लम्बे वीरान गलियारों वाले इस कालेज का साथ ,बुरा नहीं था,बाद के सालों में सोचा मैंने |उन्हीं दिनों यूँ भी हुआ :-

लड़के की उँगलियों की पोरें,
री,नरम कोंपलों से भर गयीं,
जहाँ हाथ छूता,
एक हरा निशान झांकता रहता दीवारों से भी,
सवालों ने पहन लिए,गुलाबी जूते,
मंगलवार को कहा जाने लगा ट्यूसडे,
सिर्फ पेपर के दिन ईश्वर याद करने वाले,
सवा रूपये की बूंदी के साथ,
चौखटों पर माथा रगड़ने लगे,
मेहँदी लगे एक जोड़ी हाथों में,
प्रसाद रखने के लिए,
छोड़ दी गयी शाम की खुशनुमा आवारगी,
बीयर की बोतल को दिलाया गया यकीन,
यह आस्था नहीं,प्रेम है,
मेरा इंतज़ार करना |
***
छत्त पर खड़े होकर उडायीं गयीं पतंगें,
माँझे को सूता गया,
विरह के कांच और लाल रंग के साथ,
उँगलियों पर चढ़ा लिए गये गुबारे,
आकाश तक उड़ने दिया गया नीली पतंगों को,
हवाओं को उलझाने दिए बाल,
कोहनियों को छिलने दिया दीवार की रगड़ों से,
समूह चित्रों के लिए ,
फोटोग्राफरों को बोला गया, प्लीज़ !
कपडे वाले चाचा से पूछा गया,
उनकी पसंद का रंग,
उल्टियाँ आने की हद्द तक खाए गये गोलगप्पे,कि
वक़्त काटने का और रास्ता ना था |
***
लड़की ने दोस्तों से पूछा उस लड़के का नाम,
अमूल की चोकलेट लेकर,
और याद किया चोकलेट के साथ कहे जाते,
"आपके प्रिय के लिए उपहार " को
भूरी आँखों की उबलती उदासी को,
आँख के फैलते काज़ल को समेटा,
मुस्कुराते हुए कहा,
ओह्ह ! चीनी से कितना वज़न बढ़ता है,
और प्रेम भी तो मीठा होता है ना ?
***
लड़के ने कुछ नहीं कहा,
लड़की तो चुप थी ही,
समय के हाथ में है इक काले रंग का बुरुश,
तय है,
हरे और गुलाबी का काले के नीचे छुपना,
मैदान में क्रिकेट खेलते बच्चों से कहा उस लड़के ने,
गेंद को छूने दो बल्ले का,
भीतरी या बाहरी किनारा,कि
सारी ज़िन्दगी तकनीक से खेलना गुनाह है |

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