कृशकाय,निढाल वृद्ध ने अपनी आँखें घुमाई,
पैतयाने बैठे हुए पौत्र को देख मुस्कुराए,
अस्फुट उनके अधरों से निकला ,
बनारसीदास ............और होंठ एक असीमित विस्तार में फ़ैल गये .
पैतयाने बैठे पौत्र ने पाया,
बाबा धीरे धीरे उतर रहें हैं विस्मृति की एक गहरी खाई,
बनारसीदास उनसे ग्यारह वर्ष पहले सिधार चुके बालसखा थे .
बुजुर्ग बतिया रहे थे अपने सखा से,
किसी नीले कंचे के बारे में
घबराया पौत्र खोजता निकला किसी को ,
जो हो सके मददगार उस घडी,और लौटा
एक अनपढ़ क्न्पोउडर के साथ .
बाबा कंचे बांटते हुए दूर कहीं चले गये .
ब
लोहे की गद्दी वाली मेज़ पर लेटते हुए,
वह सोच रहा था ,
क्या वे जो एक बार चले जाते हैं,
कभी नहीं लौटते ?
***
स्मृतियों में भी .
पैतयाने बैठे हुए पौत्र को देख मुस्कुराए,
अस्फुट उनके अधरों से निकला ,
बनारसीदास ............और होंठ एक असीमित विस्तार में फ़ैल गये .
पैतयाने बैठे पौत्र ने पाया,
बाबा धीरे धीरे उतर रहें हैं विस्मृति की एक गहरी खाई,
बनारसीदास उनसे ग्यारह वर्ष पहले सिधार चुके बालसखा थे .
बुजुर्ग बतिया रहे थे अपने सखा से,
किसी नीले कंचे के बारे में
घबराया पौत्र खोजता निकला किसी को ,
जो हो सके मददगार उस घडी,और लौटा
एक अनपढ़ क्न्पोउडर के साथ .
बाबा कंचे बांटते हुए दूर कहीं चले गये .
ब
लोहे की गद्दी वाली मेज़ पर लेटते हुए,
वह सोच रहा था ,
क्या वे जो एक बार चले जाते हैं,
कभी नहीं लौटते ?
***
स्मृतियों में भी .
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