Thursday, October 10, 2013

अकेली कविता
कहाँ होती है प्रोढ़,
बिना कवि को साथ लिए ,
उसका हाथ अपने हाथों में थामे ,
सहलाती ,बहलाती
लिए चलती है ,
अतृप्त कामनाओं के जंगल से
किसी ऐसे गंतव्य को
जिसे नहीं जानती
खुद कविता भी |
हर प्रोढ़ कविता के
संग ,एक बल पक जाता है
कवि का |
देह के जंगलों में
भटकते आदिवासी
सबसे अच्छे कवि होते हैं,
जिनका कहा
तुरंत पढ़ती है स्वयं प्रकृति
और देती है ,
एक प्रतिक्रिया
जीती जागती सी |

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