Thursday, October 10, 2013

उम्र की धुंध में खोये,हमारे हाथ टटोलते रहेंगे,आपसी स्पर्श की खोई कुंजियाँ .सख्त हुए उँगलियों के पोर,गहरी हुई हथेलियों की दरारें,अजीब तरीके से असंभव कोनों पर घूम चुकी हस्त रेखाएं,इतिहास को फिर से लिखेंगी .पता है ,छुअन को अब भी नहीं आता ,छुए जाने का सटीक अनुवाद .स्पर्श उतने ही अनपढ़ हैं ...अब भी वैसे ही लिखते हैं,देह पर प्रेम को प्रेम !सोचता हूँ,अगर आँख नहीं जानती जताना,और होंठ नहीं जानते ,एक जामुनी स्याही में लिखना,तो कितना मुश्किल था...किसी का किसी को कहना "प्रेम "

अरसे बाद पुराने पत्र मिलते हैं,

किसी अखबार के नीचे दबाये ,या

किसी ऊँचे रौशनदान में रखे,

सलीके से तह किये हुए,

गर्द का पहरन पहने .

मेरे हाथ झाड़ते हैं उनपर उग आई धूल,

सच्चाई का सख्त खुरचन,

सफाई के इरादे से उतारता है,

दिल-ओ-जहन पर उग आई फफूंद को,

मैं देखता हूँ तुम्हे रेज़ा रेज़ा खुद से झड़ते हुए .

लाल स्याही से लिखे ख़त,

सहक को बदल लेते हैं काली स्याही में,

गर्द से गुफ्तार करते,

बारी बारी से लेते हैं तुम्हारा नाम,

लिखे हर्फों में से एकाएक गिर पड़ता है,

मेरा नाम .

ख़ामोशी, एक जंग आलूदा छैनी के गिरने के आवाज़ है .

जंग की पतली चमड़ी में,

मैं खुद से अलग होता हूँ ,कि

नहीं घड़ पाया वह घड़ी,जिसमें,

मंत्रोचार से मोहक तुम्हारे नाम में

टपकता मैं भी |

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