एक विंडचाइम,
बहुत सालों से ,
घर के दरवाज़े पर
लटकी है,मेरे कुल कद से ,
एक सेंटीमीटर ऊँची,
बिला नागा बजती है ,
जब भी मैं गुज़रता हूँ ,
इस दरवाज़े से हो कर ,और
अक्सर तो तब भी ,
जब मैं घर नहीं होता ,
न आया हुआ ,ना जाता हुआ |
दरअसल ,यह सिर्फ गुसलखाने की ,
टूटीयों की टिप -टिप ही ,
नहीं होती ,जो रात भर टपकती है ,
नीचे पड़ी प्लास्टिक की ,
बाल्टियों में ,और आप ,
आधी -आधी रात को ,
उठ बैठते हैं ,अक्सर तो
पूरी रात ही नहीं सोते |
ज्यादा आसान लगता है आपको ,
खुद को इन्सोम्निक बता कर ,
बड़े बाज़ार वाले केमिस्ट से ,
हफ्ते में दो बार नींद की ,
गोलियां मंगवाना ,बजाय
एक ही बार प्लम्बर बुला कर ,
सारी टूटीयां ठीक करवा लेने से |
२.
दरअसल आपके
और सिर्फ आपके सिवा ,
पुरे घर में ,कोई भी नहीं जानता ,कि
टूटीयां जब टपकती हैं,
बूंदें बन कर,स्मृतियों की बाल्टियों में,
तब नीमबंद आपकी पलकों से ,
एक समय भी गुज़रता है ,
सुरमचू की तरह ,और
याद आते हैं वह दिन,
जब आप नुक्कड़ों पर खड़े,
किसी परी चेहरा दोशीजा के ,
वहां से गुजरने का इंतज़ार करते थे,
जिसके एक नज़र आपको ,
देख लेने भर से ,दिन भर
प्रेम की बूंदें टपकती रहतीं थीं ,
दिल के मटके में |
३.
सच कहूं ,तो
आप इमानदार नहीं हैं ,
अपनी नींद के साथ भी ,
और जीना चाहते हैं ,
विंडचाइम और कालबेल ,
की घंटियों के बीच ही कहीं ,
अपने बचे हुए समय को ,
गहरी काली रातों में ,
सायं-सायं करती तेज़ हवा चलती है ,
और हवा से हिलती ,
विंडचाइम की पाइपें,
एक दुसरे से टकराती हैं ,
सर्द रातों में भी आप ,
दरवाज़ा खोल कर देखते हैं ,
जहाँ किसी ने ,
अब होना ही नहीं है |
इतने खूबसूरत शब्दों की तारीफ में कैसे शब्द लाए जाएँ...अभी कुछ दिन पहले ही आपकी फेसबुक वाल पर गयी थी...सोच ही रही थी कि आप ब्लॉग पर क्यूँ नहीं...आज आपको यहाँ देख कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteहेडर में लिखी हुयी कविता इतनी अच्छी लगी थी कि एक दोस्त को उसी वक्त फोन किया बस सुनाने के लिए...फिर और भी बहुत कुछ सुनाती गयी थी...आपका लिखा बहुत बहुत अच्छा लगा.
आपने जितना सुन्दर लिखा है...उतना अच्छा कमेन्ट नहीं कर पाऊँगी...बस कहना था...उम्मीद है यहाँ बहुत कुछ पढ़ने को मिलता रहेगा. बहुत सारा शुक्रिया इतना खूबसूरत कुछ रचने के लिए.
आपने तो पहले ही बहुत कुछ कह दिया | आभार के अतिरिक्त क्या कह सकता हूँ |
Deletefollowed .... very nice writing.
ReplyDeleteThank for joining the blog . Welcome . I remember you for your poem in स्त्री होकर सवाल करती है | Happy to see you here .
Deletesuper pics , all the best sir
Deleteआमद सुखद है !
ReplyDeleteआपकी यह अनुभूति बनी रहे ,प्रयास करूंगा |आभार |
Deleteदेख लेने भर से ,दिन भर
ReplyDeleteप्रेम की बूंदें टपकती रहतीं थीं ,
दिल के मटके में..
मटके में पाने अब भी ठंडा ही रहता है ...देखे से करार जो आया था
दीपक जी स्वागत है आपका ...अब मोगाम्बो खुश है
देर आये दुरुस्त आये...दीपक जी.
ReplyDeleteअहा......
ReplyDeleteपहली पोस्ट......जानदार!!!!
blog को पुनर्जीवित करें....
यहाँ भी पोस्ट करें...दूसरों के blog को भी कृतार्थ करे :-)
मोगाम्बो खुद अकेले खुश हो ये क्या अच्छा लगता है :-)
अनु
वाह बहुत सुन्दर !!!नए ब्लॉग की ढेरों बधाई दीपक जी ,
ReplyDeleteअब आपकी रचनाएँ एक साथ पढ़ी जा सकेंगी ..............!!!
आपके नज्मों के हम तो पहले से ही कायल हैं !!
बेहतरीन प्रस्तुति !!
उत्कृष्ट रचनाएँ .....
ReplyDeleteशुक्रिया मित्रो .............इस प्रोत्साहन के लिए .विनत हूँ !
ReplyDeleteaapko blog par dekh kar achchha laga...:)
ReplyDeleteshaandaar agaaaaj:)
shubhkamnayen...
sir
ReplyDeleteye word verificatin hata do...
irritation hoti hai...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहर आहट उसके आने की आहट तो नहीं होती फिर भी उसे याद करने का बहाना तो बन ही सकती है । .....बहुत सुन्दर कविता । ब्लाग अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति !!
ReplyDeleteno words to say... bahut hi achi lagi kavita...
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