Friday, April 5, 2013

....तो पढ़ा मैंने अपना चेहरा भी

धीरे से बदल जाती है दुनिया,
एक शोर से भरी सड़क से,
बिना पानी की झील सी स्तब्धता में,
डूबती तैरती,हरे पत्तों के बीच के अन्धकार सी रौशनी,
मेरे चेहरे पर तुम्हारा चेहरा छाप देती है .

अपने होने के भीतर भर जाता है,
तुम्हारे होने का पानी,
प्रेम में होने की निरीहता,
चेहरे से ओले की तरह टपकती है,
मैं जानता हूँ उन पलों में होता हूँ मैं,
कील निकले मुहांसे सा ,दीगर
कोई मिला कर नहीं देखता मेरे चेहरे को,
मेरे चेहरे से उस एक पल में .

मेरी मुस्कराहट में खाई में उतरते होने सा अवसाद,
मेरी नाक की नोक पर टिकी शिकारी कुत्ते सी सूंघ,
तुम्हे मेरे आसपास टोहती है,
अपने भीतर मैं देख रहा होता हूँ,
घुप्प अँधेरे में फड़फड़ा उड़ते कबूतरों को .
(बहुत दिन निर्वात में तुमसे बतियाते,आज आईना देखा .....तो पढ़ा मैंने अपना चेहरा भी )

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