घुटनों तक झलकती पिंडलियों से परावर्तित होते
प्रकाश के चेहरे पर एक अभिन्न आलोक था .प्रकाश ने कबूलनामा दिया,"शुक्र कि
मैं आईना नहीं था ......वर्ना किरच किरच हो गया होता ." जोड़ा आईना होता तो
रौशनी से चमक गया होता यह ग्रह .उसने शीशे को बोलकर शुक्रिया कहा ....आईना
होने के लिए ...........आईना ना होने के लिए भी .
तुम्हारा प्रेम ( यदि सच ही वह क्रांति नहीं था )
मेरे खून के दबाव को नापते अब भी,
क्यों उनके चेहरे से झलकता है,
किसी घातक बम की तार काटने सा भाव,
शायद यह उस विस्फोटक प्रेम की मार्कशीट है,
जो तुम तक पहुंची नहीं,जिसे तुमने पढ़ा नहीं ,
***
अराजक,स्त्रीविरोधी इसीलिए प्रेमविरोधी,
इस समय की सीढ़ियों पर केले के छिलके तरतीबवार रखें हैं,
आह ! अज्ञान तू होता तो,
वे कह पाते मेरा प्रेम लिपटा है फीते सा ,
तुम्हारी देह से ही
***
कसाई कहता है सत्तर किल्लो के बकरे में,
डेढ़ किल्लो का होता है दिल ,
मैं नब्बे किल्लो का हूँ,
पर यह प्रतिशत और औसत का सवाल नहीं .
***
मेरी देह की नसों को गर तरतीब से फैला सकें वह,
उससे पूरी होती है पौनी पृथ्वी,और
शतांश मेरे प्रेम का भी .
***
चूंकि यह गणित नहीं और जीव विज्ञान भी,
पिछली बातें भूल जाओ,
याद रखो केवल
प्रेम क्रांति तुम मैं और ...........सच !
तुम्हारा प्रेम ( यदि सच ही वह क्रांति नहीं था )
मेरे खून के दबाव को नापते अब भी,
क्यों उनके चेहरे से झलकता है,
किसी घातक बम की तार काटने सा भाव,
शायद यह उस विस्फोटक प्रेम की मार्कशीट है,
जो तुम तक पहुंची नहीं,जिसे तुमने पढ़ा नहीं ,
***
अराजक,स्त्रीविरोधी इसीलिए प्रेमविरोधी,
इस समय की सीढ़ियों पर केले के छिलके तरतीबवार रखें हैं,
आह ! अज्ञान तू होता तो,
वे कह पाते मेरा प्रेम लिपटा है फीते सा ,
तुम्हारी देह से ही
***
कसाई कहता है सत्तर किल्लो के बकरे में,
डेढ़ किल्लो का होता है दिल ,
मैं नब्बे किल्लो का हूँ,
पर यह प्रतिशत और औसत का सवाल नहीं .
***
मेरी देह की नसों को गर तरतीब से फैला सकें वह,
उससे पूरी होती है पौनी पृथ्वी,और
शतांश मेरे प्रेम का भी .
***
चूंकि यह गणित नहीं और जीव विज्ञान भी,
पिछली बातें भूल जाओ,
याद रखो केवल
प्रेम क्रांति तुम मैं और ...........सच !
(अनंत बार बोला प्रेम ,असंख्य बार सुना प्रेम ,दो बार छुआ प्रेम ,तीन बार
खोया प्रेम .....ईश्वर मैंने तुम्हे कभी नहीं पाया ,कभी नहीं खोया
..............सच प्रेम !)
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