Friday, April 13, 2012

स्लेटी रात और काले पंख


तुम्हे बात करते सुनता हूँ ,

तो यूँ लगता है ,
सीने पर सिली जेब से ,
एक कबूतर निकला ,और उड़ गया ,
मैं देर तक खड़ा ,स्याह होते ,
आकाश को देखता हूँ ,
जमीन पर गिरे कुछ सलेटी पंख उठाता हूँ ,
और चला आता हूँ वापिस ,
अपने कमरे में,जहाँ अब ,
पूरी रात सुननी है ,अकेले मुझे
फडफडाते पंखो की आवाज़ |

1 comment:

  1. आवाज़ इतनी भी खूबसूरत हो सकती है...जादू ही है न!

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