Friday, April 13, 2012

कुछ भी मुकम्मल नहीं होता |


कि,कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,

सदा के लिए ,
उन्नतीस दिन कटा रहता है ,
एक स्लाइस चाँद से भी ,
और ,कुछ दिन तो होता है वह,
मेरे नाखून के नीचे बने ,
सफेद गोलार्ध सा ,
हम दोनों उसे देखते हैं ,
और वह हमें ,
बस ,तुम ढक लेती हो उसे नेलपालिश से ,
और ,मैं डाल लेता हूँ हाथ ,
पतलून की जेबों में |
****
सचमुच कुछ भी मुकम्मल नहीं होता
स दा के लिए ,
और कोई गोशा दिल का ,
भूरा हो जाता है समय के साथ ,
क्योंकि अब कोई भी नहीं रहता उसमें ,
खून के सिवा ,
तुम्हारी याद में धड़कने को बना है दिल ,
उसे नहीं पसंद ,
एक पम्पिंग सेट भर बने रहना
कल से काम पर नहीं आएगा वोह ,
कहा है उसने उलाहना देकर |
*****
कि ,सचमुच कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,
सदा के लिए ,
यक़ीनन यही वजह है ,
कि मेरी सोच के परदे पर ,
जब हंसती हुई भी आती है,
तुम्हारी तस्वीर ,
मैं छु सकता हूँ ,
तुम्हारी आँखों की कोर पर
झलकती ,गहरी जमी उदासी को |
*****
शायद यही वजह है ,
कि ,कुछ भी मुकम्मल नहीं होता ,
सदा के लिए |

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